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भाजपा स्थानीय निकाय चुनाव की तैयारियों में जुटी, कांगे्रस को अभी तक नहीं मिला अपना नेता विपक्ष

 हैट्रिक से भाजपा नए जोश के साथ बढ़ रही है आगे, कांगे्रस हार के सदम से नहीं निकल पाई बाहर
 
 भाजपा स्थानीय निकाय चुनाव की तैयारियों में जुटी, कांगे्रस को अभी तक नहीं मिला अपना नेता विपक्ष 
चंडीगढ़, 20 नवंबर। भाजपा सरकार की अपनी अलग रणनीति है, वह अपने सिद्धांतों से कोई समझौता नहीं करती, चुनाव जीते या हारे वह तुरंत नई रणनीति और नए जोश के साथ  अपने काम में जुट जाती है। हरियाणा में भाजपा हैैट्रिक के बाद नए उत्साह से सराबोर है, वह अभी से स्थानीय निकाय चुनाव की तैयारियों में जुट चुकी है। इसके साथ ही संगठन को और मजबूती प्रदान करने के लिए संगठन से जुड़़े नेताओं के साथ विचार विमर्श कर भवष्यि के लिए नई पटकथा लिखने में लगी हुई है जबकि  कांगे्रस  है कि वह हार के सदमें से अभी तक बाहर ही नहीं निकल पाई है, इतना ही नहीं कांगे्रस अभी तक अपना नेता विपक्ष तक नहीं चुन पाई है। विधानसभा चुनाव में पिछडऩे वाली कांगे्रस अपनी ही वजह से और पिछड़ती जा रही है। अगर ऐसे ही हालात रहे हरियाणा में कांगे्रस और सिमटती चली जाएगी।
हरियाणा में विधानसभा चुनाव में जीत के बाद भाजपा निकाय चुनाव की तैयारी में जुट गई है। भाजपा  इसे लेकर मजबूत रणनीति तैयार कर रही है और कांगे्रस के लिए ऐसे चक्रव्यूह की रचना कर रहा है जहां से भागने के लिए कांगे्रस को कोई रास्ता ही न मिले। डबल इंजन की सरकार बनाने के बाद बाद शहरों में सरकार बनाने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोडऩा चाहती हैै। भाजपा मुंगेरीलाल के हसीन सपने नहीं देखा करती है। उसके पास पन्ना प्रमुख तक फौज खड़ी है, पार्टी नेताओं, विधायकों  सांसदों के साथ  साथ मंत्रियों तक तो टास्क दिया जाती है, जिसे पूरा करने की जिम्मेदारी उनकी ही होती है।  भाजपा के स भी सेल सक्रिय कर दिए गए है, दिसंबर से लेकर जनवरी तक सभी अपने-अपने शहरी क्षेत्रों में सक्रिय होकर काम करेंंगे। शहरों में जल निकासी , साफ-सफाई के साथ सडक़ों पर फोकस करने के लिए संबंधित अधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं।
उम्मीदवारों के बारे में लिया जा रहा है  फीडबैक
भाजपा  विधायक दल की बैठक में  संगठन पदाधिकारियों के साथ साथ विधायकों से नगर परिषद, नगर पालिका, नगर निगम के संभावित प्रत्याशियों का फीडबैक मांगा जा रहा है।  इस बार निकाय चुनाव में विधानसभा चुनाव की तरह भाजपा नए चेहरों पर दांव खेलने की तैयारी कर रही है। साथ ही विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की मदद करने वाले पार्षदों की सूची तैयार की जा रही है। साथ ही   निकाय चुनाव में भाजपा परिवार पहचान पत्र  को लेकर काफी डरी हुई है। इस योजना के लागू होने के बाद लोगों को काफी परेशानी हुई। कई बुजुर्गों, विधवाओं की पेंशन तक कट गई।  चुनाव में मुद्दा न बने इसको लेकर सरकार ने अधिकारियों को जिला स्तर पर समाधान शिविर शुरू करने के निर्देश दिए हैं।
बिना फ ौज के जंग नहीं जीती  जाती
भाजपा जिसे विश्व की सबसे बड़ी पार्टी कहा जा रहा है, उसको बड़ा बनाने में उसके संगठन की अहम भूमिका है। भाजपा ने बूथ स्तर  पर भी कमेटी बनाई हुई है जबकि कांगे्रस पिछले 12 सालों में अपना संगठन तक खड़ा नहीं कर पाई, कई प्रदेशाध्यक्ष आए और चले गए, कई प्रदेश प्रभारी आए और पानी पीकर चले गए। कांग्रेस बिना फौज के चुनाव जीतने का सपना देखती है, विधानसभा चुनाव में जीती भी बाजी उसके हाथ से फिसल गई, एक तो गुटबाजी थी जो आज भी है दूसरा संगठन का न होना।   पिता पुत्र ही हरियाणा कांग्र्रेस का संचालन कर रहे थे। स्थानीय निकाय सिर पर है बावजूद इसके कांगे्रस हार के सदमें से बाहर नहीं निकली है ऐसा लग रहा है कि बिना संगठन के लिए कांगे्रस मैदान में उतरेगी।अपना जीतेगा नहीं जो आजाद जीतेगा वहीं हमारा होगा।
जहां कांगे्रस की सोच खत्म होती है वहां से भाजपा की शुरू होती है
कई दशक तक देश पर एक छत्र राज करने वाली कांगे्रस की इतनी बुरी दशा होगी किसी ने सोचा नहीं था, आज वह कई राज्यों मेंं क्षेत्रीय दलों के कंधे पर हाथ रखकर चल रही है। गुटबाजी में डूबी कांगे्रस के पास न तो कोर्ई नीति है, न कोई नेता है  और न ही अब उसकी नीयत भी साफ दिखाई दे रही है।  कांग्रेस की जहां पर सोच खत्म होती है वहां से भाजपा की सोच शुरू होती है, उसके पास आरएसएस जैसा संगठन है जो समय समय पर भाजपा को संभलकर चलना सिखाता है। भाजपा ने जब भी आरएसएस की सीख नहीं मानी उसे नुकसान उठाना पड़ा है। भाजपा संभल चुकी है और हर कदम फूंक फूं ककर रख रही है।
कांगे्रस अपना नेता तक नहीं चुन पा रही है
हरियाणा कांगे्रस में अगर बदलाव न हुआ तो प्रदेश की जनता उसे इतना पीछे धकेल सकती है कि तब बच्चों को बताना होगा कि एक कांगे्रस होती थी। विधानसभा चुनाव में हार के बाद हार के कारण जानने के लिए कमेटी पर कमेटी गठित की जा रही है,हाईकमान कोई दूध पीता बच्चा तो है नहीं जिसे पता नहीं की वे कैसे हारे। गुटबाजी  इस कदर हावी है कि कांगे्रस के विधायक नेता निपक्ष्पा नहीं चुन पाए अगर विधायक ऐसे नेता का नाम तय कर हाईकमान को बता चुके हैं तो हाईकमान उसके नाम की घोषणा क्यों नहीं करता क्योंकि हाईकमान भी हिम्मत हार रहा है।  स्थानीय निकाय चुनाव में भी कांगे्रस के हाथ से बाजी फिर रेत की तरह फिसल जाएगी।