Pal Pal India

क्या भारत जोड़ो यात्रा का लाभ हरियाणा कांगे्रस उठा पाएगी ?

चुनावी वर्ष-2024 के लिए हरियाणा में सियासी बिसात बिछा गए राहुल गांधी 
 
क्या भारत जोड़ो यात्रा का लाभ हरियाणा कांगे्रस उठा पाएगी ?​​​​​​​ 
सिरसा, 13 जनवरी। भारत जोड़ो यात्रा के दौरान कांगे्रस के एकमात्र धुरंधर राष्ट्रीय नेता राहुल गांधी ने चुनावी वर्ष-2024 के लिए हरियाणा में सियासी बिसात बिछा दी है। हरियाणा में यात्रा का रूट मैप बहुत ही रणनीतिक तरीके से तैयार किया गया है। यात्रा का फोकस उन क्षेत्रों पर रखा गया है जो कभी कांग्रेस का गढ़ रहे हैं और फिलहाल कमजोर स्थिति में है। अब देखना है कि क्या कांगे्रस इस यात्रा का लाभ उठाकर भाजपा को घेर पाएगी या फिर गुटबाजी में फंसकर हाशिये पर चली जाएगी क्योंकि इस बार हरियाणा में  उसका मुकाबला भाजपा के साथ, आम आदमी पार्टी, जेजेपी और इनेलो से भी होगा। पानीपत रैली में जिस प्रकार से नेता एक मंच पर साथ-साथ बैठे थे पर उनके दिलों की दूरियां कम नहीं हुई थी।  राहुल को हरियाणा में कांगे्रस जोडऩे की दिशा में भी काम करना चाहिए था अगर कांगे्रस एक ही हाथ का खिलौना बनकर खेलती रही तो बाजी कोई जीत ले जाएगी।
हरियाणा में राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा  दो चरण में हुई।  यात्रा के दौरान राहुल गांधी 255 किलोमीटर चले। इनमें उन्होंने सात जिले कवर किए। पहले चरण में नूंह, फरीदाबाद और गुरुग्राम को कवर किया। दूसरे चरण में यात्रा पानीपत, करनाल, कुरुक्षेत्र और अंबाला गई। राहुल गांधी कुल आठ दिन हरियाणा में रहे। अब यात्रा पंजाब में प्रवेश कर गई।  यात्रा अंतिम दिन अंबाला में रही। इस यात्रा में कांंग्रेस के राष्ट्रीय और प्रदेश स्तरीय सभी छोटे-बड़े नेता शामिल हुए। राहुल गांधी पहली बार अंबाला पहुंचे थे हालांकि, गांधी परिवार के तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी वर्ष 1978, तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी वर्ष 1984 व 1991 में अंबाला लोकसभा और विधानसभा चुनाव में प्रचार कर चुके  थे । यही नहीं, वर्ष 2004 में सोनिया गांधी ने भी प्रचार किया था। राहुल गांधी की यात्रा में भीड़ जुट रही है पर भीड़ लोकप्रियता का पैमाना नहीं होती,कुछ देखने वालों की भीड़ होती है तो कुछ स्वार्थी लोगों की भीड़ होती है। इस यात्रा में हरियाणा के हर जिला के कार्यकर्ता और नेता शामिल हुए। इनमें ज्यादातर संख्या ऐसे लोगों की भी थी जो टिकटार्थी थे और उन्होंनें भीड़ जुटाकर एक प्रकार से पार्टी हाईकमान के समक्ष शक्ति प्रदर्शन किया।

सब एक-दूसरे को नीचा दिखाना चाहते है
कांगे्रस  की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि पार्टी में रहते हुए सब एक-दूसरे को नीचा दिखाना चाहते है। हरियाणा कांगे्रस गुटों में बंटी हुई है नेताओं ने अपने अपने गुट बनाए हुए है या यह भी कहा जा सकता है कि कार्यकर्ताओं ने अपने-अपने नेताओं का दामन थामा हुआ है और वे अपने नेताओं के इशारे पर ही उछल कूछ करते हैं। कांगे्रस भूपेंद्र सिंह हुड्डा, सैलजा, किरण चौधरी, कैप्टन अजय यादव गुटों में बंटी हुई है। हालांकि नेता किसी भी प्रकार की गुटबाजी से इंकार करते है पर सामने आते ही नकली मुस्कराहट से एक- दूसरे का स्वागत करते हैं। पानीपत रैली में एक ही मंच पर पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा, क ांगे्रस की राष्ट्रीय महासचिव सैलजा, पूर्व मंत्री किरण चौधरी और राज्यसभा सदस्य एवं पूर्व राष्ट्रीय प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला मौजूद थे। मंच संचालन राज्यसभा सदस्य दीेपेंद्र सिंह हुड्डा और पूर्व मंत्री राव दान सिंह के हाथों में था पर हुड्डा पिता पुत्रों और राव दान सिंह ने मंच से एक बार भी सैलजा, रणदीप सिंह सुरजेवाला और किरण चौधरी का नाम तक नहीं लिया जबकि राहुल गांधी ने सैलजा को पूरा मान सम्मान दिया।

हाईकमान के आंखें बंद कर लेने से दूर नहीं होगी गुटबाजी
ऐसा नहीं है कि पाटी हाईकमान ने इस बात को महसूस न किया हो कि हु्ड्डा पिता पुत्र दूसरे गुट के लोगों की जानबूझकर अनदेखी कर रहे है। अगर  पार्टी इस पर भी संज्ञान नहीं लेती तो साफ है कि पार्टी ने हुड्डा को पूरी छूट दी हुई है और हुड्डा की हर गतिविधि को लेकर आंखें बंद की हुई है। सच तो यह है कि हाईकमान ही गुटबाजी खत्म नहीं कर रहा है। नाराज नेताओं को खुश करने के लिए संगठन में बड़े बड़े पद दे दिए गए पर हाईकमान गुटबाजी खत्म नहंी कर पाया। हरियाणा कांगे्रस का जो भी प्रभारी आया वह सिर पकड़कर बैठा रहा पर गुटबाजी कम होने के बजाए बढ़ती गई। राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा के दौरान प्रदेश कांगे्रस को संजीवनी देकर गए है अगर यह संजीवनी भी कांगे्रस में प्राण न फूंक सकी तो इस बार भी कांगे्रस प्रदेश की सत्ता से दूर ही रहेगी। राहुल गांधी चुनावी वर्ष-2024 के लिए हरियाणा में सियासी बिसात भी बिछा गए है। वे  क्षेत्र जो कभी कांग्रेस के गढ़ रहे हैं और फिलहाल कमजोर स्थिति में है वहां पर राहुल गांधी ने जान डालने का काम किया है।

कार्यकर्ताओं उत्साह का संचार कर गए राहुल गांधी
राहुल गांधी जो कुछ भी कर रहे है वह कांगे्रस में जान डालने के लिए कर रहे है क्योंकि  देश पर एकछत्र राज करने वाली कांगे्रस सत्ता से दूर रही है। ऐेसे में  कार्यकर्ताओं में  मायूसी छा जाती हैै और से लगता है कि सत्ता से दूर रहकर उसकी कोई सुनने वाला नहीं है और  न ही उसकी राजनीतिक इच्छा पूरी हो सकती है ऐसे में कार्यकर्ताओं में भगदड़ मच जाती है और वह उस पार्टी की ओर चला जाता है जहां उसे अपना भविष्य सुरक्षित दिखाई देता है। जीटी बेल्ट में पानीपत की रैली, करनाल में राहुल गांधी का रात्रि विश्राम और कुरुक्षेत्र में ब्रह्मसरोवर की आरती कांग्रेस की चुनावी रणनीति का हिस्सा मानी जा रही है। राहुल गांधी यात्रा में चलते-चलते और पड़ाव के दौरान कांग्रेसियों को उत्साहित करते हुए आगे के लिए कमर कसने और सूबे में जल्द संगठन को तैयार कर एकजुट होने का संदेश दे रहे हैं, हालांकि कांग्रेस नेताओं की ओर से बार-बार यह बताया जा रहा है कि यह सियासी यात्रा नहीं है।


यात्रा के दौरान सामने आने वाले तमाम मुद्दों से ही तैयार होगा कांग्रेस का घोषणा पत्र
यात्रा के दौरान किसानों, विभिन्न संगठनों से मिलकर उनकी समस्याएं सुनना भी इसी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। यात्रा के दौरान सामने आने वाले तमाम मुद्दों से कांग्रेस की घोषणा पत्र कमेटी के सदस्यों के समक्ष चर्चा के लिए रखा जाना है, ताकि कांग्रेस आगामी चुनावों के मद्देनजर एक मजबूत घोषणा पत्र तैयार कर सके।  करनाल, कुरुक्षेत्र और अंबाला लोकसभा क्षेत्र में सभी लोकसभा व विधानसभा क्षेत्रों में से अधिकतर पर भाजपा-जजपा के विधायक व सांसद काबिज हैं। तीनों लोकसभा सीटों पर भाजपा का कब्जा है।  कांगे्रस फिर से इन सीटों पर कब्जा करना चाहती है।  भाजपा के दबदबे वाली करनाल, अंबाला और कुरुक्षेत्र लोकसभा व विधानसभा सीटों पर कांग्रेस का परचम दोबारा फहराने के लिए रणनीति बनाई जा रही है।

राहुल गांधी ने हरियाणा में तैयार कर दी उपजाऊ राजनीतिक जमीन
राहुल गांधी द्वारा हरियाणा में तैयार की गई उपजाऊ राजनीतिक जमीन पर फसल उगाने की जिम्मेदारी प्रदेश कांगे्रस के नेताओं की है। अगर सभी ने एक साथ मिलकर सत्ता हासिल करने का संकल्प लिया तो कांगे्रस सत्ता तक पहुंचने का सपना देख सकती है, सपनों को सच किया जा सकता है पर हरियाणा कांगे्रस में गुटबाजी इस कदर है कि अगर एक गुट का उम्मीदवार जीत रहा है तो दूसरे गुट का नेता अपने समर्थकों के वोट किसी अन्य दल के उम्मीदवार के पक्ष में डलवाकर अपनी पार्टी के उम्मीदवार को हरा देता है। अगर गुटबाजी दूर कर सभी एक दूसरे की मदद करे तो कांगे्रस फिर से सत्ता में आने का सपना देख सकती है। अगर पार्टी हाईकमान की अनुशासन समिति कठोर फैसले लेकर कार्रवाई करे तो गुटबाजी कम हो सकती है पर हाईकमान को इस बात का डर रहता है कि वरिष्ठ नेता किसी अन्य पार्टी में न चला जाए या अपनी नई पार्टी न बना ले जैसा हो रहा है। कांगे्रस के सभी नेताओं को इस यात्रा का पूरा लाभ उठाने के लिए एकजुट होना ही होगा। वर्ना तो आम आदमी पाटी उसके वोट बैंक पर कब्जा कर लेगी। जैसा गुजरात चुनाव में हुआ है आप ने कांगे्रस के वोटों पर डाका डाला था।