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अधिकारियों और ठेकेदारों को नहीं है उपायुक्त का भय

पैचवर्क के नाम पर हो रही खानापूर्ति, गड्ढों में भरी सीमेंट दूसरे दिन ही उखड़ी
 
अधिकारियों और ठेकेदारों को नहीं है उपायुक्त का भय
सिरसा, 28 दिसंबर। जिस प्रकार चिकने घड़ों पर कोई असर नहीं होता ठीक उसी प्रकार नगर परिषद के अधिकारियों पर कोई असर होता  नहंी दिख रहा है। चाहे मंत्री, सांसद या उपायुक्त फटकार लगाएं। वे लोग एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल देते हैं। उनकी गिद्ध निगाहें सिर्फ और सिर्फ पैसों पर लगी रहती हैं कि कैसे और कहां से पैसा कमाया जाए। 
नगर परिषद द्वारा सडक़ों परे पैच वर्क करवाने के नाम पर महज खानापूर्ति की जा रही है। गड्ढों में जो माल डाला जा रहा है वह दूसरे दिन ही उखड़ जाता है। अधिकतर सडक़ों के गड्ढों की अनदेखी की जा रही है। उपायुक्त ने दो बार नगर का दौरा किया था और अधिकारियों को दो सप्ताह का समय भी दिया पर उनके कान पर जूं तक नहीं रेंगी। आज भी ये गड्ढे हादसों का सबब बन रहे हैं।
गौरतलब है कि सिटी थाना रोड पर कु छ माह पूर्व सडक़ में किए गए गड्ढे में गिरकर एक महिला चिकित्सक की मौत हो गई थी। कानून कहता है कि इस प्रकार के हादसे के लिए नगर परिषद जिम्मेदार होती है और पीडि़त पक्ष परिषद से मुआवजा मांग सकता है। 
हादसे के बाद नगर परिषद की खूब किरकिरी हुई। प्रशासन ने पैचवर्क करने का आदेश दिया। नगर परिषद ने नगर को दो हिस्सों में बांटकर पैचवर्क का ठेका दे डाला। वार्ड एक से 15 तक और 16 से 31 तक 25-25 लाख के ठेके अलग अलग ठेकेदारों को दिए गए। इस ठेके में नगर परिषद अधिकारियों की मिलीभगत नजर आती है। पैचवर्क के नाम पर खानापूर्ति की जा रही है। बाजारों में जहां पर पैचवर्क किया गया था वहां फिर से पहले जैसे हालात हैं। शिकायत करने पर कहा जाता है कि ये नए गड्ढ़े है जबकि स्थिति यह है कि इन गड्ढ़ों में जो सामग्री डाली गई थी वह घटिया थी और उखड़ गई।
उपायुक्त ने नगर का दौरा करते हुए नगर परिषद अधिकारियों को चेतावनी दी थी कि दो सप्ताह में बस स्टैंड से लेकर खैरपुर तक सडक़ का निर्माण जल्द से जल्द करवाया जाए पर बीच बीच में छोडक़र कच्ची पक्की सडक़ बना दी गई। साथ ही उन्होंने सडक़ों के गड्ढे भरने की हिदायत दी थी। इसके बाद उपायुक्त ने 13 दिसंबर को फिर नगर का दौरा किया और फिर पहले जैसी चेतावनी देकर दौरे की खानापूर्ति की। अगर अधिकारियों में उपायुक्त का भय होता तो नगर में सारे काम दिखाई देते पर ऐसा कुछ नहीं है। नगर में जिस गली या सडक़ पर निकल जाओ गड्ढे दिखाई देंगे जहां पर गिरकर लोग घायल होते हैं। उपायुक्त पार्थ गुप्ता को एक बार फिर समय निकालकर नगर का दौरा करना चाहिए और देखना चाहिए कि हालात कै से हो गए है। 
नायक फिल्म के नायक की भांति उपायुक्त को चाहिए कि वह मौके पर ही दोषी अधिकारी को सस्पेंशन आर्डर थमाएं और ठेकेदारों को ब्लैक लिस्ट करते हुए उनकी जमानत राशि जब्त करें। उनके खिलाफ केस दर्ज करवाए क्योंकि इस प्रकार के अधिकारी अपने उच्चाधिकारियों की सुनने की बजाए अदालत की भाषा अच्छी प्रकार से समझते हैं। अगर प्रशासन कोई सुनवाई नहीं कर रहा तो समाजसेवी होने का दंभ भरने वालों को कोर्ट में याचिका दायर कर निकम्मे और भ्रष्ट अधिकारियों को सजा दिलानी होगी।