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त्रि-स्तरीय पंचायतों, नगर पालिकाओं और निगमों के चुनाव कराने से डरती आई हैं सरकारें

पांच साल के लिए चुने गए निगमों में मेयर का चुनाव एक साल के लिए क्यों? 
 
त्रि-स्तरीय पंचायतों, नगर पालिकाओं और निगमों के चुनाव कराने से डरती आई हैं सरकारें 
सिरसा, 29 जनवरी। सरकार चाहे किसी भी दल की रही हो पर त्रि-स्तरीय पंचायतों, नगर पालिकाओं और निगमों के  चुनाव कराने से डरती आई है जब उन्हें लगता है कि हवा का रूख उनकी ओर है तो चुनाव करवाती है क्योंकि ये चुनाव लोकसभा और विधानसभा को प्रभावित करते हैं। सच तो यह है कि जो सरकार जैसा बोयेगी वैसी ही फसल उसे काटनी होगी।  पूर्व प्रधानमंत्री स्व.राजीव गांधी  पंचायती राज और नगर पालिका विधेयक के सूत्रधार थे। उन्होंने लोक अदालतों के माध्यम से त्वरित न्याय दिलाने के प्रयासों को भी प्रमुखता से बढ़ावा दिया। पंचायती राज संस्थाओं के जरिये लोगों को सशक्त बनाने का काम आसान नहीं था, फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी और कार्य करके दिखाया। पर मौजूदा सरकारें इन छोटी सरकारों को कमजोर करने का प्रयास कर रही है उन्हें उन अधिकारों से वंचित किया जा रहा है जिसके लिए वे हक दार है। अभी प्रदेश में  नगर पालिका कालांवाली, नगर परिषद सिरसा और नगर निगम फरीदाबाद, मानेसर और गुरुग्राम के चुनाव होने है पर बार बार टरकाए जा रहे हैं।
देश की तरक्की का रास्ता गांवों में से होकर निकलता है यह पूरा सच है और इसे लेकर किसी भी प्रकार का किंतु-परंतु नहीं हो सकता। देश में विधानसभा, लोकसभा, राज्यसभा और विधान परिषद के चुनाव ऐसे है जिनमें कोईदेरी नहीं की जाती। सरकारें चाहे किसी भी राजनीतिक दल की रही हो पर ये चुनाव कभी नहीं टाले गए। इनको छोड़कर कोई भी चुनाव समय पर नहीं हुए, चुनाव कब होने है यह सरकार की मर्जी पर निर्भर होता है अगर सरकार को लगता है कि हवा उसके विपरीत बह रही है तो वह कोई न कोई बहानाकर चुनाव टरकाती आई है या चुनाव की तैयारी में ऐसा झोल डाल दिया जाता है जिसे ठीक कराने के लिए लोक अदालत की शरण में जाते है जहां से फैसला आने में काफी देर हो जाती है और सरकार की मंशा भी देरी से चुनाव करवाने की रहती थी। पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी दूर की सोच रखते थे और जानते थे कि  जब कि गांवों की छोटी सरकार मजबूत नहीं होती और धरातल पर कोई काम नहीं होगा तब तक  देश तरक्की नहीं कर सकता। इसी को ध्यान में रखते हुए देश में पंचायती राज और नगर पालिका विधेयक पारित हुए जिसके राजीव गांधी  सूत्रधार थे। उन्होंने लोक अदालतों के माध्यम से त्वरित न्याय दिलाने के प्रयासों को भी प्रमुखता से बढ़ावा दिया। पंचायती राज संस्थाओं के जरिये लोगों को सशक्त बनाने का काम आसान नहीं था, फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी। वह भ्रष्टाचार के दीमक को भली-भांति पहचानते थे। इसी कारण उन्होंने निसंकोच कहा था कि सरकार द्वारा खर्च प्रत्येक रुपये में से केवल 15 पैसा ही लाभार्थी तक पहुंचता है। उन्होंने स्थानीय स्वशासन के लिए 1989 में लोकसभा में 64वां संविधान संशोधन विधेयक पेश किया। जमीनी स्तर पर लोगों को सशक्त बनाने का दृढ़ संकल्प लेकर राजीव गांधी ने 1991 के लोकसभा चुनाव के घोषणापत्र में पंचायती राज संस्थाओं को सशक्त बनाने का वादा किया। जब  लोकसभा में 3वें और 4वें संविधान संशोधन अधिनियम के लागू हुआ तो  राजीव गांधी काभी  सपना भी पूरा हुआ, जिससे ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में पंचायतों, त्रि-स्तरीय पंचायतों और नगर पालिकाओं को पर्याप्त शक्तियां, वित्तीय संसाधन और महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित करने का फैसला लिया गया।
हरियाणा में नगर परिषद और नगर पालिकओं के चुनाव कभी भी समय पर नहीं हुए। चुनाव करवाने में  एक से दो साल देरी
हुई। वर्ष 2022 में प्रदेश में 18 नगर परिषदों और 28 नगर पालिकाओं के चुनाव हुए। पर वार्डबंदी न होने पर सिरसा नगर परिषद, नगर पालिका कालांवाली के चुनाव नहीं हो पाए।  नगर निगम फरीदाबाद, मानेसर और गुरुग्राम के चुनाव भी बार बार टरकाए जा रहे हैं। सरकार की नीयत में कही न कही खोट रही कि गलत वार्डबंदी कर दी गई जिससे लोगों ने नाराजगी जताते हुए सरकार के समक्ष गुहार लगाई पर सरकार ने एक न सुनी क्योंकि वार्डबंदी सत्तापक्ष ने स्वयं के हितों को आगे रखकर करवाई थी ऐसे में पीडि़तों को अदालत की शरण में जाना पड़ा जब तक अदालत कोई आदेश नहीं देती चुनाव टाले जाते रहेंगे और यही तो सरकार चाहती है।

वार्डबंदी के लिए 2011 की आबादी को आधार बनाया गया
राज्यपाल की मंजूरी के बाद जारी अधिसूचना में कहा गया है कि वार्डबंदी के लिए 2011 की आबादी को आधार बनाया गया है। कुरुक्षेत्र जिले की थानेसर नगर परिषद में कुल जनसंख्या एक लाख 69 772 है, जिसमें से 25184 एससी हैं। एससी के लिए पांच, महिलाओं के लिए 11 और एससी महिलाओं के लिए 2 सीटें आरक्षित की गई हैं। 13 सीटें सामान्य वर्ग के लिए रहेंगी। सिरसा नगर परिषद में एक लाख 95 हजार 536 जनसंख्या है, जिसमें 44359 एससी हैं। एससी के लिए यहां सात, महिलाओं के लिए 11, एससी महिलाओं के लिए 3 सीटें आरक्षित की हैं। अन्य सीटें सामान्य वर्ग के लिए रहेंगी।  सिरसा में वार्डबंदी मनमाने तरीके से हुई, वार्डो में वोटर की संख्या में बड़ा अंतर है तो परिसीमन भी सहीं नहीं है कोई वार्ड बहुत बड़ा है तो कुछ बहुत छोटे है। कुछ लोगों की राजनीति खत्म करने के लिए उनके वार्ड की ऐसी की तैसी कर दी गई। यहीं वजह कि लोगों को अदालत की शरण में जाना पड़ा। अब तरीख पर तारीख पडती रहेगी जब तक फैसला नहीं आएगा चुनाव नही होगा।

सरकार की नीयत में खोट
 जब भी किसी संस्था के चुनाव होने होते है तो समय से पूर्व ही चुनाव की तैयारियां कर समय पर चुनाव करवाए जाते रहे हैं। लोकसभा और विधानसभा के चुनाव कभी नहीं टाले गए। जम्मू कश्मीर और पंजाब जब आतंकवाद और उग्रवाद से ग्रस्त रहे तब भी चुनाव नहीं टाले गए और समय पर चुनाव हुए। राजस्थान एक मात्र ऐसा प्रदेश है जहां पर पंचायती राज ईमानदारी से लागू हुआ और प्रभावशाली ढंग से लागू हुआ बाकी प्रदेश खानापूर्ति के लिए काम कर रहे हैं। दरअसल सत्ता पक्ष दृढ़ राजनीतिक इच्छा के अभाव में रहते हुए चुनाव करवाने से कतराते हैं कही उनके हाथों से सत्ता न फिसल जाए। सरकार पंचायतों और स्थानीय निकायों को अधिकार नहीं देना चाहती अगर उन्हें उनका हक दिया तो सरकार तो नाम की ही रह जाएगी।

सरकार सरपंचों के हकों में कर रही है कटोती
सरकार पारदर्शिता के नाम पर पंचायती राज संस्थाओं के हकों पर डाका डाल रही है। सरकार खुद भ्रष्टचार में डूबी हुई है सरकार का हर विभाग भ्रष्टाचार से आज तक बाहर नहीं निकल पाया, हालात ये है तो जो काम पहले सौं रुपये में होता था आज पांच हजार रुपये में हो रहा है। सरकार की सख्ती का ही परिणाम है कि सुविधा शुल्क दस गुना तक बढ़ गए, सच तो यह है कि भ्रष्टाचार खत्म नहीं हुआ है, भ्रष्टाचार के तरीके नया नया रूप लेते जा रहे है। ई टेंडरिंग सरकार का सरपंचों को परेशान करने का हथियार है। सरकार सरपंचों पर अपना शिकंजा कसा हुआ रखना चाहती है। सच तो वह है कि सरकार पंचायती राज संस्थाओं, नगर पालिका और नगर परिषदों को  अपने कब्जे में रखना चाहती है।

चुनाव पांच साल के लिए तो मेयर का चुनाव हर साल क्यों
इस देश की विडंबना देखों जहां पर नगर निगम के चुनाव पांच साल के लिए होता है, पार्षद भी पांच साल के लिए ही चुने जाते है पर मेयर का चुनाव हर साल करवाया जाता है। यह मनमानी नहीं है तो क्या है। दिल्ली नगर निगम के  चुनाव हो चुके है पर मेयर को चुनाव बार बार टाला जा रहा है। दिल्ली और चंडीगढ़ में मेयर का चुनाव एक एक साल के लिए होता है। जो पूरी तरह से गलत हैं, जब मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री का चुनाव पांच पांच साल के लिए होता है तो मेयर का क्यों नहीं।

दल-बदल कानून सब  जगह लागू होना चाहिए
लोकतांत्रिक व्यवस्था की मजबूती के लिए ही दल बदल कानून लागू किया था, जिसकी वजह से सरकार बचती आ रही है वर्ना तो धन-बल के सहारे डेरा धमकाकर या प्रलोभन देकर विधायक एक दल से दूसरे दल में छलांग लगाकर सरकार गिरा देते थे। आया राम गया राम की शुरूआत हरियाणा से हुई जिसे रोकने के लिए दल बदल कानून लागू हुआ। इस कानून को हर लोकतांत्रिक संस्था में लागू करना चाहिए।  पर मेयर के चुनाव में यह कानून लागू नहीं होता। सरकार को इस दिशा में भी सोचना चाहिए।

सिरसा नगर परिषद का दायरा बढ़ा पर वार्ड संख्या नहीं  
 सिरसा नगर परिषद में 31 वार्ड है जिनमें से सात अनुसूचित जाति के लिए (इनमें चार पुरुष व तीन महिलाएं), 11 वार्ड महिलाओं के लिए तथा 13 वार्डों में सामान्य वर्ग के उम्मीदवार चुनाव लड़ सकते हैं।  पिछले पांच साल में सिरसा शहर की सीमाएं साथ लगते गांवों तक बढ़ी हैं। ऐसे में शहरी सीमा के साथ लगते गांवों को शहर में शामिल किया गया। वार्डबंदी के सर्वे में रामनगरिया, चतरगढ़पट्टी का कुछ एरिया, हिसार रोड, कंगनपुर, खाजाखेड़ा का कुछ एरिया नगरपरिषद क्षेत्र में शामिल किया गया है। सिरसा में 31 वार्ड है।  लेकिन वार्डों में मतदाताओं की संख्या और एरिया का विस्तार हुआ है।