जैसलमेर के गजरूप सागर के पास मिला अंडे का जीवाश्म
Sep 10, 2023, 12:44 IST

जैसलमेर, 10 सितंबर। सीमांत व रेगिस्तानी जिला और पुरातन पुरा संपदा से भरपूर प्राचीन जैसलमेर जिले के गजरूप सागर के पहाड़ी क्षेत्र में अंडे का जीवाश्म मिला है। जो सम्भवतः करोड़ों वर्ष पूर्व लुप्त हुए डायनासोर का हो सकता है। भू-जल वैज्ञानिक डॉ. नारायण दास इणखिया ने जानकारी देते हुए बताया कि उनको मेघवाल समाज के भीम कुंज पहाड़ी एरिया में भ्रमण के दौरान ये अंडे का जीवाश्म (एग फॉसिल) मिला है। पहले भी इस क्षेत्र में डायनासोर के जीवाश्म मिल चुके हैं। कुछ वर्ष पूर्व भारतीय भू वैज्ञानिक सर्वे और आईआईटी की टीम ने यहीं पर डायनासोर के जीवाश्म खोजे थे।
इणखिया के अनुसार एग फॉसिल किस प्रजाति का है, यह अनुसन्धान का विषय है। भू वैज्ञानिक काल क्रम के अनुसार ये एग फॉसिल डायनासोर या उस काल के किसी अन्य जीव का भी हो सकता है। ईणखिया ने बताया कि अनुसन्धान के बाद ही असली स्थिति स्पष्ट होगी।
गौरतलब है कि कुछ वर्ष पूर्व भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वे और आईआईटी की टीम ने यहीं पर डायनासोर के जीवाश्म खोजे थे। इणखिया के अनुसार यह किस प्रजाति का है, यह अनुसंधान का विषय है। उन्होंने बताया कि भू-वैज्ञानिक कालक्रम के अनुसार डायनासोर या उस काल के किसी जीव का यह एग फॉसिल हो सकता है। जैसलमेर की जेठवाई- गजरूप सागर इलाके की पहाड़ियों में जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (जीएसआई) के वैज्ञानिक देबाशीष भट्टाचार्य, कृष्ण कुमार, प्रज्ञा पांडे और त्रिपर्णा घोष ने 2018 में रिसर्च शुरू किया था। जिले के जेठवाई गांव की पहाड़ियों में रिसर्च के दौरान सबसे पुराने शाकाहारी डायनासोर थारोसोरस के जीवाश्म मिले थे। सबसे ज्यादा डायनासोर की रीढ़, गर्दन, सूंड़, पूंछ और पसलियों के जीवाश्म मिले थे। थार रेगिस्तान में मिले डायनासोर के जीवाश्म को ‘थारोसोरस इंडिकस' यानी भारत के थार का डायनासोर नाम दिया गया है।
थार का मरुस्थल भारत के मरुस्थल का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। भूगर्भ शास्त्रियों का दावा है कि थार के मरुस्थल के स्थान पर पहले विस्तृत समुद्र टेथिस सागर हुआ करता था। कार्बोनिफरस व पार्मियन पीरियड में यहां पर समुद्र का अस्तित्व था। यह खनिज संसाधनों की दृष्टि से काफी संपन्न है। यहां प्रमुख रूप से कोयला, प्राकृतिक गैस तथा तेल के बड़ी मात्रा में भंडार प्राप्त हुए हैं। इनके अलावा नमक, जिप्सम, लाल ग्रेनाइट, प्रसिद्ध पीला पत्थर तथा चूने पत्थर के प्राप्त भंडार भी पाए जाते हैं। जैसलमेर के आकल में बड़ी संख्या में जीवाश्म खण्ड रखे हैं। यहां रखे जीवाश्म करोड़ों सालों का इतिहास बयां करते हैं। ये जिवाश्म 180 करोड़ साल पुराने हैं। इन पत्थरों की बनावट समुद्री जीवों जैसी है, जो उस समय जीव थे और अब पत्थर रूप में हैं। ये इस बात की पुष्टि करते हैं कि यहां करोड़ों साल पहले समुद्र था। धरती संरचना में आए बदलाव के चलते अब यहां थार का मरुस्थल है। यह पत्थर सबूत है कि 180 करोड़ साल पहले थार मरुस्थल की जगह समुद्र था। आकल की जगह से 180 करोड़ साल पुराना ही जीवाश्म मिला जो किसी पेड़ से बना पाया गया। इस पत्थर में पेड़ के तने में बनने वाली परतों जैसी बनावट है, जो ये साबित करता है कि सागर के एक किनारे घने पेड़ थे।
ऐसा माना जाता है कि मेसोजोइक महाकल्प में यह क्षेत्र समुद्र का हिस्सा था, जिसका प्रमाण 'आकल' (जैसलमेर) में स्थित जुरासिक काल की लकड़ियों के अवशेष 'कास्ट जीवाश्म पार्क' में देखे जा सकते हैं। इसके साथ-साथ ‘ब्रह्मसर' के आस-पास समुद्री निक्षेपों का प्रमाण मिला है। 'काष्ट जीवाश्म पार्क' में जीवाश्मों की आयु 18 करोड़ वर्ष आंकी गई है। आकल वुड फॉसिल्स पार्क में इसका प्रमाण जहां करोड़ों वर्षों पूर्व के विशाल वृक्षों के अवशेष मिट्टी में दबे हुए मिले हैं, वहीं भूगर्भशास्त्रियों का मत है कि यह क्षेत्र पहले एक बहुत ही उपजाऊ भाग था। बड़ी बड़ी नदियां बहती थी। किंतु भूगर्भिक हलचलों द्वारा इस क्षेत्र में भौगोलिक परिवर्तन हुआ।
इणखिया के अनुसार एग फॉसिल किस प्रजाति का है, यह अनुसन्धान का विषय है। भू वैज्ञानिक काल क्रम के अनुसार ये एग फॉसिल डायनासोर या उस काल के किसी अन्य जीव का भी हो सकता है। ईणखिया ने बताया कि अनुसन्धान के बाद ही असली स्थिति स्पष्ट होगी।
गौरतलब है कि कुछ वर्ष पूर्व भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वे और आईआईटी की टीम ने यहीं पर डायनासोर के जीवाश्म खोजे थे। इणखिया के अनुसार यह किस प्रजाति का है, यह अनुसंधान का विषय है। उन्होंने बताया कि भू-वैज्ञानिक कालक्रम के अनुसार डायनासोर या उस काल के किसी जीव का यह एग फॉसिल हो सकता है। जैसलमेर की जेठवाई- गजरूप सागर इलाके की पहाड़ियों में जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (जीएसआई) के वैज्ञानिक देबाशीष भट्टाचार्य, कृष्ण कुमार, प्रज्ञा पांडे और त्रिपर्णा घोष ने 2018 में रिसर्च शुरू किया था। जिले के जेठवाई गांव की पहाड़ियों में रिसर्च के दौरान सबसे पुराने शाकाहारी डायनासोर थारोसोरस के जीवाश्म मिले थे। सबसे ज्यादा डायनासोर की रीढ़, गर्दन, सूंड़, पूंछ और पसलियों के जीवाश्म मिले थे। थार रेगिस्तान में मिले डायनासोर के जीवाश्म को ‘थारोसोरस इंडिकस' यानी भारत के थार का डायनासोर नाम दिया गया है।
थार का मरुस्थल भारत के मरुस्थल का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। भूगर्भ शास्त्रियों का दावा है कि थार के मरुस्थल के स्थान पर पहले विस्तृत समुद्र टेथिस सागर हुआ करता था। कार्बोनिफरस व पार्मियन पीरियड में यहां पर समुद्र का अस्तित्व था। यह खनिज संसाधनों की दृष्टि से काफी संपन्न है। यहां प्रमुख रूप से कोयला, प्राकृतिक गैस तथा तेल के बड़ी मात्रा में भंडार प्राप्त हुए हैं। इनके अलावा नमक, जिप्सम, लाल ग्रेनाइट, प्रसिद्ध पीला पत्थर तथा चूने पत्थर के प्राप्त भंडार भी पाए जाते हैं। जैसलमेर के आकल में बड़ी संख्या में जीवाश्म खण्ड रखे हैं। यहां रखे जीवाश्म करोड़ों सालों का इतिहास बयां करते हैं। ये जिवाश्म 180 करोड़ साल पुराने हैं। इन पत्थरों की बनावट समुद्री जीवों जैसी है, जो उस समय जीव थे और अब पत्थर रूप में हैं। ये इस बात की पुष्टि करते हैं कि यहां करोड़ों साल पहले समुद्र था। धरती संरचना में आए बदलाव के चलते अब यहां थार का मरुस्थल है। यह पत्थर सबूत है कि 180 करोड़ साल पहले थार मरुस्थल की जगह समुद्र था। आकल की जगह से 180 करोड़ साल पुराना ही जीवाश्म मिला जो किसी पेड़ से बना पाया गया। इस पत्थर में पेड़ के तने में बनने वाली परतों जैसी बनावट है, जो ये साबित करता है कि सागर के एक किनारे घने पेड़ थे।
ऐसा माना जाता है कि मेसोजोइक महाकल्प में यह क्षेत्र समुद्र का हिस्सा था, जिसका प्रमाण 'आकल' (जैसलमेर) में स्थित जुरासिक काल की लकड़ियों के अवशेष 'कास्ट जीवाश्म पार्क' में देखे जा सकते हैं। इसके साथ-साथ ‘ब्रह्मसर' के आस-पास समुद्री निक्षेपों का प्रमाण मिला है। 'काष्ट जीवाश्म पार्क' में जीवाश्मों की आयु 18 करोड़ वर्ष आंकी गई है। आकल वुड फॉसिल्स पार्क में इसका प्रमाण जहां करोड़ों वर्षों पूर्व के विशाल वृक्षों के अवशेष मिट्टी में दबे हुए मिले हैं, वहीं भूगर्भशास्त्रियों का मत है कि यह क्षेत्र पहले एक बहुत ही उपजाऊ भाग था। बड़ी बड़ी नदियां बहती थी। किंतु भूगर्भिक हलचलों द्वारा इस क्षेत्र में भौगोलिक परिवर्तन हुआ।