केंद्रीय बजट के लिए जमाअत-ए-इस्लामी हिंद ने केंद्र सरकार को दिए कई सुझाव
Jan 2, 2025, 19:26 IST
नई दिल्ली, 02 जनवरी जमाअत-ए-इस्लामी हिंद ने अगले केन्द्रीय बजट के लिए सरकार को कई सुझाव दिए हैं। प्रमुख सुझावों में आर्थिक न्याय की आवश्यकता और जारी संकट के मूल कारणों को ध्यान में रखकर शासन में विश्वास बहाल करने पर बल दिया गया है। इसके अलावा एमएसएमई को पुनर्जीवित करने और रोजगार सृजन को बढ़ाने के लिए सब्सिडी वाले ऋण, तकनीकी उन्नयन, कर प्रोत्साहन और बुनियादी ढांचे के समर्थन के लिए संसाधन आवंटित करने पर बल दिया गया है।
इस बावत गुरुवार को मुख्यालय में अमीर-ए-जमाअत सआदतउल्ला हुसैनी ने जमाअत-ए-इस्लामी के दीगर पदाधिकारियों के साथ मीडिया से बातचीत की।संवाददाता सम्मेलन में केंद्रीय बजट 2025-26 को लेकर विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से चर्चा करते हुए कहा गया कि देश का बजट गंभीर आजीविका संकट के बीच प्रस्तुत होने वाला है। युवा बेरोजगारी 45.4 फीसदी के चौंका देने वाले स्तर पर है। लगभग 20 फीसदी आबादी गरीबी में जीवन यापन कर रही है और कृषि जीडीपी वृद्धि 2.8 फीसदी तक गिर गई है।
जमाअत-ए-इस्लामी हिंद ने असमानता, बेरोजगारी और उपेक्षा की समस्या को दूर करने एवं पुनर्वितरणीय न्याय, समान विकास और प्रभावी शासन को प्राथमिकता देने के लिए भावी बजट में आमूलचूल नीतिगत बदलाव का आह्वान किया है। जमाअत नेताओं का कहना है कि हम व्यवसाय वृद्धि और कर प्रोत्साहन पर केन्द्रित आपूर्ति की रणनीति से हटकर मांग के दृष्टिकोण की वकालत करते हैं, जिसका उद्देश्य नागरिकों की क्रय शक्ति को बढ़ाना, उपभोग को प्रोत्साहित करना और कल्याणकारी कार्यक्रमों को बढ़ाना है।
जमाअत नेताओं के प्रमुख सुझावों में आर्थिक न्याय की आवश्यकता और जारी संकट के मूल कारणों को ध्यान में रखकर शासन में विश्वास बहाल करने पर बल दिया है।
जमाअत ने शहरी बेरोजगारी से निपटने के लिए मनरेगा के बजट में की गई 33 फीसदी कटौती को वापस लेने तथा शहरी समकक्ष योजना लागू करने की मांग की है।
नवीकरणीय ऊर्जा, कृषि प्रसंस्करण और जैविक खेती के लिए "ग्रामीण रोजगार केन्द्र" स्थापित करने, शहरी स्तर की सुविधाओं के साथ उच्च गुणवत्ता वाले ग्रामीण टाउनशिप विकसित करने का सुझाव दिया है।
एमएसएमई को पुनर्जीवित करने और रोजगार सृजन को बढ़ाने के लिए सब्सिडी वाले ऋण, तकनीकी उन्नयन, कर प्रोत्साहन और बुनियादी ढांचे के समर्थन के लिए संसाधन आवंटित करन पर बल दिया गया है।
जमाअत-ए-इस्लामी ने आगे कहा कि रोजगार सृजन के लिए पीएलआई
प्रोत्साहन को केवल उत्पादन (पीएलआई) के बजाय रोजगार सृजन से जोड़ा जाए, युवाओं, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति, मुसलमानों और अविकसित क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया जाए। स्वास्थ्य व्यय को सकल घरेलू उत्पाद के 4 फीसदी तक बढ़ाया जाए, आयुष्मान भारत को सार्वभौमिक कवरेज तक विस्तारितकिया जाए, मध्यम वर्ग को कवरेज प्रदान किया जाए तथा इसमें बाह्य रोगी देखभाल, दवाएं और निदान शामिल किया जाए।
शिक्षा के लिए सकल घरेलू उत्पाद का 6 फीसदी आवंटन के साथ "मिशन शिक्षा भारत" की शुरुआत हो, आरटीई के अंतर्गत माध्यमिक शिक्षा को शामिल किया जाए, विशेष रूप से ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे और सुविधाओं में सुधार हो तथा राज्य और केंद्रीय विश्वविद्यालयों के लिए वित्त पोषण में वृद्धि किया जाए।
इसके साथ ही मुस्लिम छात्रवृत्ति को पुनर्जीवित की जाए, छात्रों और उद्यमियों के लिए ब्याज मुक्त ऋण निधि की स्थापना की जाए तथा अल्पसंख्यक बहुल जिलों में कौशल क्षेत्र स्थापित किया जाए।
इस बावत गुरुवार को मुख्यालय में अमीर-ए-जमाअत सआदतउल्ला हुसैनी ने जमाअत-ए-इस्लामी के दीगर पदाधिकारियों के साथ मीडिया से बातचीत की।संवाददाता सम्मेलन में केंद्रीय बजट 2025-26 को लेकर विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से चर्चा करते हुए कहा गया कि देश का बजट गंभीर आजीविका संकट के बीच प्रस्तुत होने वाला है। युवा बेरोजगारी 45.4 फीसदी के चौंका देने वाले स्तर पर है। लगभग 20 फीसदी आबादी गरीबी में जीवन यापन कर रही है और कृषि जीडीपी वृद्धि 2.8 फीसदी तक गिर गई है।
जमाअत-ए-इस्लामी हिंद ने असमानता, बेरोजगारी और उपेक्षा की समस्या को दूर करने एवं पुनर्वितरणीय न्याय, समान विकास और प्रभावी शासन को प्राथमिकता देने के लिए भावी बजट में आमूलचूल नीतिगत बदलाव का आह्वान किया है। जमाअत नेताओं का कहना है कि हम व्यवसाय वृद्धि और कर प्रोत्साहन पर केन्द्रित आपूर्ति की रणनीति से हटकर मांग के दृष्टिकोण की वकालत करते हैं, जिसका उद्देश्य नागरिकों की क्रय शक्ति को बढ़ाना, उपभोग को प्रोत्साहित करना और कल्याणकारी कार्यक्रमों को बढ़ाना है।
जमाअत नेताओं के प्रमुख सुझावों में आर्थिक न्याय की आवश्यकता और जारी संकट के मूल कारणों को ध्यान में रखकर शासन में विश्वास बहाल करने पर बल दिया है।
जमाअत ने शहरी बेरोजगारी से निपटने के लिए मनरेगा के बजट में की गई 33 फीसदी कटौती को वापस लेने तथा शहरी समकक्ष योजना लागू करने की मांग की है।
नवीकरणीय ऊर्जा, कृषि प्रसंस्करण और जैविक खेती के लिए "ग्रामीण रोजगार केन्द्र" स्थापित करने, शहरी स्तर की सुविधाओं के साथ उच्च गुणवत्ता वाले ग्रामीण टाउनशिप विकसित करने का सुझाव दिया है।
एमएसएमई को पुनर्जीवित करने और रोजगार सृजन को बढ़ाने के लिए सब्सिडी वाले ऋण, तकनीकी उन्नयन, कर प्रोत्साहन और बुनियादी ढांचे के समर्थन के लिए संसाधन आवंटित करन पर बल दिया गया है।
जमाअत-ए-इस्लामी ने आगे कहा कि रोजगार सृजन के लिए पीएलआई
प्रोत्साहन को केवल उत्पादन (पीएलआई) के बजाय रोजगार सृजन से जोड़ा जाए, युवाओं, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति, मुसलमानों और अविकसित क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया जाए। स्वास्थ्य व्यय को सकल घरेलू उत्पाद के 4 फीसदी तक बढ़ाया जाए, आयुष्मान भारत को सार्वभौमिक कवरेज तक विस्तारितकिया जाए, मध्यम वर्ग को कवरेज प्रदान किया जाए तथा इसमें बाह्य रोगी देखभाल, दवाएं और निदान शामिल किया जाए।
शिक्षा के लिए सकल घरेलू उत्पाद का 6 फीसदी आवंटन के साथ "मिशन शिक्षा भारत" की शुरुआत हो, आरटीई के अंतर्गत माध्यमिक शिक्षा को शामिल किया जाए, विशेष रूप से ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे और सुविधाओं में सुधार हो तथा राज्य और केंद्रीय विश्वविद्यालयों के लिए वित्त पोषण में वृद्धि किया जाए।
इसके साथ ही मुस्लिम छात्रवृत्ति को पुनर्जीवित की जाए, छात्रों और उद्यमियों के लिए ब्याज मुक्त ऋण निधि की स्थापना की जाए तथा अल्पसंख्यक बहुल जिलों में कौशल क्षेत्र स्थापित किया जाए।