फिल्म '2020दिल्ली' की रिलीज रोकने की मांग पर हाई कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा
Updated: Jan 31, 2025, 19:34 IST

नई दिल्ली, 31 जनवरी दिल्ली हाई कोर्ट ने 2020 के उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों पर बनी फिल्म '2020 दिल्ली' की रिलीज रोकने की मांग करने वाली दो याचिकाओं पर जस्टिस सचिन दत्ता की बेंच ने शुक्रवार को सभी पक्षों की दलीलें सुनीं और इसके बाद फैसला सुरक्षित रख लिया। सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने कहा कि जब तक सेंसर से सर्टिफिकेट नहीं मिल जाता, तब तक फिल्म की रिलीज रोकने की मांग का कोई मायने नहीं है।
दरअसल, दिल्ली दंगों के आरोपित शरजील इमाम समेत दो लोगों ने याचिकाएं दायर करके फिल्म निर्माता कंपनी ने कोर्ट को आश्वासन दिया कि वो बिना सेंसर बोर्ड के सर्टिफिकेट के इंटरनेट पर भी फिल्म को रिलीज नहीं करेंगे। सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने पूछा कि फिल्म में क्या याचिकाकर्ता का असली किरदार है या नाटकीयता की गई है। तब फिल्म निर्माता कंपनी ने कहा कि यह सेंसर बोर्ड को तय करना है। फिल्म निर्माता कंपनी ने कहा कि ये याचिका प्री-मैच्योर है।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं के वकील महमूद प्राचा ने कहा कि कोर्ट में केस लंबित होने तक फिल्म के ट्रेलर पर भी रोक लगाई जाए। फिल्म के ट्रेलर को रिलीज करने के लिए भी सर्टिफिकेट की ज़रूरत होती है। सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से पेश वकील ने कहा कि फिल्म को अभी तक कोई सर्टिफिकेट नहीं मिला है, इसलिए याचिका सुनवाई योग्य नहीं है। सुनवाई के दौरान फिल्म निर्माता कंपनी की ओर से कहा गया कि हमने सर्टिफिकेट के लिए आवेदन किया है, लेकिन अभी तक नहीं मिला है। शरजील इमाम के वकील ने कहा कि ट्रेलर में शरजील इमाम को दिखाया गया था। य़ह ट्रेलर हमारे मामले पर अत्यधिक पूर्वाग्रह डालेगा, क्योंकि ट्रेलर की शुरुआत में शरजील इमाम के भाषण का हुबहू इस्तेमाल किया गया है, जिसके बारे में चार्जशीट में जिक्र किया गया है। इसकी वजह से निष्पक्ष सुनवाई के मौलिक अधिकार का उल्लंघन हो रहा है, फिल्म में चार्जशीट से कुछ बातें ली गई हैं, जिनके लिए शरजील को जिम्मेदार ठहराया गया था।
हाई कोर्ट ने 30 जनवरी को केंद्र और सेंसर बोर्ड को नोटिस जारी किया था। सुनवाई के दौरान शरजील इमाम की ओर से पेश वकील ने कोर्ट से फिल्म का ट्रेलर देखे जाने की मांग करते हुए कहा था कि फिल्म में तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर पेश किया गया है। उन्होंने कहा था कि इस फिल्म के ट्रेलर में पक्षपात पूर्ण नैरेटिव दिखाया जा रहा है और इसके रिलीज होने पर उसके खिलाफ चल रहे ट्रायल और जमानत के मामले पर ग़लत असर पड़ सकता है। ऐसे में हमारी य़ह मांग है कि जब तक दिल्ली दंगों से जुड़े यूएपीए मामले में ट्रायल पूरा नहीं हो जाता, तब तक इस फिल्म की रिलीज पर रोक लगाई जाए। उन्होंने कहा था कि दिल्ली दंगे के मामले में अभी आरोप भी तय नहीं किए गए हैं, ऐसे में इस फिल्म का प्रदर्शन न्यायसंगत नहीं होगा।
दरअसल, दिल्ली दंगों के आरोपित शरजील इमाम समेत दो लोगों ने याचिकाएं दायर करके फिल्म निर्माता कंपनी ने कोर्ट को आश्वासन दिया कि वो बिना सेंसर बोर्ड के सर्टिफिकेट के इंटरनेट पर भी फिल्म को रिलीज नहीं करेंगे। सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने पूछा कि फिल्म में क्या याचिकाकर्ता का असली किरदार है या नाटकीयता की गई है। तब फिल्म निर्माता कंपनी ने कहा कि यह सेंसर बोर्ड को तय करना है। फिल्म निर्माता कंपनी ने कहा कि ये याचिका प्री-मैच्योर है।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं के वकील महमूद प्राचा ने कहा कि कोर्ट में केस लंबित होने तक फिल्म के ट्रेलर पर भी रोक लगाई जाए। फिल्म के ट्रेलर को रिलीज करने के लिए भी सर्टिफिकेट की ज़रूरत होती है। सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से पेश वकील ने कहा कि फिल्म को अभी तक कोई सर्टिफिकेट नहीं मिला है, इसलिए याचिका सुनवाई योग्य नहीं है। सुनवाई के दौरान फिल्म निर्माता कंपनी की ओर से कहा गया कि हमने सर्टिफिकेट के लिए आवेदन किया है, लेकिन अभी तक नहीं मिला है। शरजील इमाम के वकील ने कहा कि ट्रेलर में शरजील इमाम को दिखाया गया था। य़ह ट्रेलर हमारे मामले पर अत्यधिक पूर्वाग्रह डालेगा, क्योंकि ट्रेलर की शुरुआत में शरजील इमाम के भाषण का हुबहू इस्तेमाल किया गया है, जिसके बारे में चार्जशीट में जिक्र किया गया है। इसकी वजह से निष्पक्ष सुनवाई के मौलिक अधिकार का उल्लंघन हो रहा है, फिल्म में चार्जशीट से कुछ बातें ली गई हैं, जिनके लिए शरजील को जिम्मेदार ठहराया गया था।
हाई कोर्ट ने 30 जनवरी को केंद्र और सेंसर बोर्ड को नोटिस जारी किया था। सुनवाई के दौरान शरजील इमाम की ओर से पेश वकील ने कोर्ट से फिल्म का ट्रेलर देखे जाने की मांग करते हुए कहा था कि फिल्म में तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर पेश किया गया है। उन्होंने कहा था कि इस फिल्म के ट्रेलर में पक्षपात पूर्ण नैरेटिव दिखाया जा रहा है और इसके रिलीज होने पर उसके खिलाफ चल रहे ट्रायल और जमानत के मामले पर ग़लत असर पड़ सकता है। ऐसे में हमारी य़ह मांग है कि जब तक दिल्ली दंगों से जुड़े यूएपीए मामले में ट्रायल पूरा नहीं हो जाता, तब तक इस फिल्म की रिलीज पर रोक लगाई जाए। उन्होंने कहा था कि दिल्ली दंगे के मामले में अभी आरोप भी तय नहीं किए गए हैं, ऐसे में इस फिल्म का प्रदर्शन न्यायसंगत नहीं होगा।