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वैवाहिक रेप को अपराध के दायरे में लाने के मामले में पुरुष आयोग ट्रस्ट ने भी दाखिल की याचिका

 
वैवाहिक रेप को अपराध के दायरे में लाने के मामले में पुरुष आयोग ट्रस्ट ने भी दाखिल की याचिका
नई दिल्ली, 18 जनवरी। वैवाहिक रेप को अपराध के दायरे में लाए जाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में पुरुष आयोग ट्रस्ट की ओर से हस्तक्षेप याचिका दाखिल की गई है। याचिका में मैरिटल रेप के अपराधीकरण की मांग का विरोध करते हुए कहा गया है कि मैरिटल रेप का अपराधीकरण भारत में विवाह और परिवार की संस्था को अस्थिर कर देगा।

याचिका में कहा गया है कि लिंग आधारित विशिष्ट कानूनों का दुरुपयोग चिंता का विषय है। इसके लिए जेंडर बेस्ड कई कानूनों का हवाला देते हुए कहा गया है कि कैसे इन कानून का व्यापक स्तर पर दुरुपयोग किया जा रहा है। हस्तक्षेप याचिका में मैरिटल रेप को अपराध की श्रेणी में लाए जाने की मांग वाली याचिकाओं को खारिज किए जाने की मांग की गई है।

सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर पहले से सुनवाई कर रहा है। 16 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को 15 फरवरी तक जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया था। कोर्ट इस पर 14 मार्च से अंतिम सुनवाई करेगा। 16 सितंबर 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था। सुप्रीम कोर्ट को ये तय करना है कि पति का पत्नी के साथ जबरन संबंध बनाना रेप है कि नहीं।

दिल्ली हाई कोर्ट ने 11 मई, 2022 को वैवाहिक रेप के मामले पर विभाजित फैसला दिया था। जस्टिस राजीव शकधर ने भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अपवाद को असंवैधानिक करार दिया था, लेकिन जस्टिस सी हरिशंकर ने इसे सही करार दिया है। अब सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर सुनवाई करेगा।

हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने कहा था कि उसका ये रुख नहीं है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अपवाद 2 को हटाया जाए या रखा जाए। केंद्र सरकार अपना रुख संबंधित पक्षों से मशविरा के बाद ही तय करेगी। सुनवाई के दौरान एक याचिकाकर्ता के वकील कॉलिन गोंजाल्वेस ने वैवाहिक रेप को अपराध बनाने की मांग की थी। गोंजाल्वेस ने ब्रिटेन के लॉ कमीशन का हवाला देते हुए वैवाहिक रेप को अपराध बनाने की मांग की थी।

सुनवाई के दौरान गोंजाल्वेस ने कहा था कि यौन संबंध बनाने की इच्छा पति-पत्नी में से किसी पर भी नहीं थोपी जा सकती है। उन्होंने कहा था कि यौन संबंध बनाने का अधिकार कोर्ट के जरिये भी नहीं दिया जा सकता है। ब्रिटेन के लॉ कमीशन की अनुशंसाओं का हवाला देते हुए गोंजाल्वेस ने कहा कि पति को पत्नी पर अपनी इच्छा थोपने का अधिकार नहीं है। उन्होंने कहा था कि पति अगर अपनी पति के साथ जबरन यौन संबंध बनाता है तो वो किसी अनजान व्यक्ति द्वारा किए गए रेप से ज्यादा परेशान करनेवाला है।

हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान इस मामले के एमिकस क्युरी रेबेका जॉन ने कहा था कि भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अपवाद को बरकरार रखा जाना संवैधानिक नहीं होगा। जॉन ने कहा था कि भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए, 304बी और घरेलू हिंसा अधिनियम और अन्य नागरिक उपचार सहित विभिन्न कानूनी प्रावधान धारा 375 के तहत रेप से निपटने के लिए अपर्याप्त है।